सोन चिरैया भाग-2 (Son Chiraiya Part-2)

भारत की स्वाधीनता पर जो कुपित दृष्टि गड़ाते हैं, उनके लिए मन-मंदिर में कुछ भाव इस तरह आते हैं - देखोगे इसे जो बुरी नजर से, खाक में तुम मिल जाओगे, कहोगे फिर चेताया नहीं, सिर पीट-पीट पछताओगे, अस्त्र-शस्त्र भी पा लोगे, तुम साहस जुटा न पाओगे, दंभ अगर हो, कोशिश करलो, मुँह की फिर भी तुम खाओगे। जब-जब भारत के टुकड़े करने का विचार तुम लाओगे , सौगन्ध धरा की ! तब-तब तुम सोचने तक से कतराओगे । जो आए इस देवभूमि, मन चकित, पूछ सवाल रहे, कभी शरणागत को आश्रय, कभी शत्रु के बस कंकाल रहे ! देते हैं वचन ! जो याचक बन, आए स्वागत धूमधाम रहे, हर दिल में तिरंगा लहराए और लहु देश के नाम बहे ॥ 8 ॥ कश्मीर समस्या निपट गई, अब आतंकवाद मिटाना है, 'आजादी का अमृत महोत्सव', मिलकर हमें मनाना है , विकसित होने की दौड़ में भी, सबको कदम बढ़ाना है , गर पीछे कोई छूट गया, उसको भी साथ मिलाना है, खेल, कला, विज्ञान, संस्कृति, और शिक्षा सबको दिलाना है, भेदभाव की जंजीरों को, तोड़ आगे बढ़ जाना है, 'एक दिवस' त्यौहार नही, "स्वाधीनता" तो वो 'खजाना' है, जिसके बल-बूते पर फिर से "सोन-चिरैया" बन ...