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विश्वास का दीपक (Viswas Ka Deepak)

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  Image Credit : Google search images ये पता नहीं आजकल, क्या होता जा रहा है धीरे धीरे जैसे, जीवन ही खोता जा रहा है जो कभी झुके ना थे, आज उठने से कतराते हैं जो सबसे फुर्तीले थे, वही आलस के हाथों हार जाते हैं कभी सोचा नहीं था मैंने, कि इतना बदल जाऊंगा करियर को संभालने में, ज़िंदगी जीना ही भूल जाऊंगा सब जानकर भी लगता है, जैसे कि कुछ भी पता नहीं  कल तक जो इतना भाते थे, उनमें भी मन लगता नहीं हैरान हूँ कि जिंदगी ये, कहाँ ले आई मुझे  अंधियारा सा है हर तरफ, हैं दीप भी जैसे बुझे कैसे जलाऊँ दीपकों को, प्रश्न ये अब भी वहीं है बाती भी है तेल भी है, बस इक चिंगारी नहीं है भोर में दिनकर की लालिमा में उसको ढूंढता हूँ सांझ तक दिनभर की कल्पना में उसको ढूंढता हूँ दोपहर के घाम में या रात्रि के विश्राम में स्वप्न के अभिराम में और तृष्णा से संग्राम में ढूँढ़ता हूँ हर तरफ, हिम्मत अभी हारी नहीं है  बाती भी है तेल भी है, बस वो चिंगारी नहीं है एक तो ये रास्ता भी, कितने कंटक से भरा है धुंध है मायूस करती, जैसे कोई कटघरा है विश्वास के इस दीप को, लेकिन जलाके ही रहूंगा जो भी हो, उम्मीद की चिंगारी मैं लाके ही रहूंगा