सोन चिरैया भाग-1 (Son Chiraiya Part-1)
वर्षों की कठिन तपस्या से, पाये हैं ये 'पावन लम्हें',
असमंजस में हूँ, गुप्त रखूँ या लिखकर व्यक्त करूँ इन्हें ।
कोई गजलें गा के कहे, कई शायर यहाँ बेनाम रहे ।
हर दिल में तिरंगा लहराए और लहु देश के नाम बहे ॥
क्या बिसात उनकी, जो देश को दूषित करने आए थे,
एकता की इस नेक धरा में 'तोपखाना' वो लाए थे,
पानीपत की युद्धभूमि में विजयी तो कहलाए थे,
पर वीरों का साहस देख वो मन-ही-मन घबराए थे।
पल-पल की इस बर्बरता से, ये शासक कई बदनाम रहे,
हर दिल में तिरंगा लहराए और लहु देश के नाम बहे ॥1॥
यूरोपीय देशों से वो आए करने व्यापार थे,
देह 'फिरंगी' और मन में लालच से भरमार थे,
प्रतिद्वंदियों से लोहा लेने बना रहे हथियार थे,
राजाओं में 'फूट डाल', खुद राज करने तैयार थे ।
लूट-लूट वो "सोन-चिरैया", ले जा इंग्लिश्तान रहे,
हर दिल में तिरंगा लहराए और लहु देश के नाम बहे ॥ 2 ॥
दुर्विचार और कुनीतियों से, बना लिया अपना गुलाम,
प्रतिदिन शोषण कर लगा दिया, समृद्धि पर पूरण विराम,
मनमाने सूदों से नष्ट, कर दिए गृह-उद्योग तमाम,
वेद पुराण की शिक्षा रोक, संस्कृति को भी कर दिया नीलाम ।
जन-जन ने पीड़ा झेली, जो बोले वे अंजाम सहे,
हर दिल में तिरंगा लहराए और लहु देश के नाम बहे ॥ 3 ॥
सत्तावन की थी भोर लालिमा, नई उम्मीदें आईं थी,
जब अंग्रेजी सत्ता उस दिन चर्बी कारतूस लाई थी ,
जुल्मों का पुरजोर जवाब, मंगल पांडे की अगुवाई थी,
जनाक्रोश था और यही आजादी की 'प्रथम लड़ाई' थी।
घर-घर में थे क्रांति वीर, बज 'शंखनाद' हर शाम रहे,
हर दिल में तिरंगा लहराए और लहु देश के नाम बहे ॥ 4॥
कुरीतियों के बंधन तोड़, कंधे से कंधा मिला रहे,
फंदा चूमते गले में डाले, वीर भगतसिंह मुस्कुरा रहे,
सुखदेव - राजगुरु से साथी, पाकर थे कहर बरसा रहे,
मातृभूमि में हो न्यौछावर 'वन्दे मातरम्' गुनागुना रहे।
गली-गली में 'इंकलाब', और वीर कई गुमनाम रहे,
हर दिल में तिरंगा लहराए और लहु देश के नाम बहे ॥ 5 ॥
थी शाम ऊर्जावान और हर एक सुबह सुहानी थी,
धरती के कोने - कोने में, 'बापू ' की फैली कहानी थी,
धर्म, जाति, लिंग, भाषा अलग, पर एक सबकी जुबानी थी,
परवशता का अँधियारा हरने, स्वाधीनता की किरणें लानी थी।
क्षण-क्षण आजादी निकट आई, बलिदान सभी बेदाम रहे,
हर दिल में तिरंगा लहराए और लहु देश के नाम बहे ॥ 6 ॥
बलिदान उन वीरांगनाओं का भी, व्यर्थ नहीं हो सकता था,
जेलों में कटी उन रातों का, यूँ मोल नहीं गिर सकता था,
रक्त से सिंचित बीज धरा में, दबा नहीं रह सकता था,
आजादी का सूरज क्षितिज के पार नहीं छिप सकता था ।
कण-कण आजादी से प्रफुल्लित, अब नहीं किसी के गुलाम रहे,
हर दिल में तिरंगा लहराए और लहु देश के नाम बहे ॥ 7 ॥
To Be Continued ...
- आकाश
भाग 2 -
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