यादों का एक सहारा (Yadon Ka Ek Sahara)

दूर कहीं आसमान में देखा, तारा एक टिमटिमा रहा था मैं आज यादों के सहारे, गाँव अपने जा रहा था । वो खेत जिसकी मेढ़ों पर चलकर अकसर फिसलते थे, वो धूमिल गलियाँ जिनपर हम अनायास ही टहलते थे, वो शाम की सौंधी सुगंध जब मवेशी टोलियों में निकलते थे, 'टापर' की मधुर ध्वनियां सुन नन्हें बछड़ों संग हम भी उछलते थे । भले तन पसीने से चूर, पर था मन आनंद से भरपूर, ऊँची थी उसकी कदकाठी, चलता हाथों में लिए लाठी, धोती पहना था मटमैली, टाँगा गमछे की बना थैली, और पशुओं को हांकता मदमस्त चला आ रहा था, मैं फिर से यादों के सहारे, गाँव अपने जा रहा था ॥ 1 ॥ संतरा वाली गोली को खाते चटकारे ले लेकर, वो भी इतनी अनमोल कि मिलती आठ आने की मुट्ठी भर, सूर्योदय होते ही सखियों संग जाती वो नदी लिए गागर, लालिमा भोर की पाती थीं, बूंदें गागर से छलक छलककर, सिर में गागर वो दोहराए, आँचल मस्ती में लहराए, पैरों में उसके लिपटी धूल, मगर होठों से झड़ते फूल, घूंघट में कभी शर्माए वो, कभी मन्द - मन्द मुस्काए वो, सूरज भी इस मोहिनी रूप पर किरणें तब बिखरा रहा था, मैं फिर से यादों के सहारे, ...