जिंदगी की एक किताब (Zindagi Ki Ek Kitab)



क्यों न हम तुम मिलकर लिखें, जिंदगी की एक किताब,

कुछ बातें सच्ची होंगी, कुछ होंगे महज़ ख़्वाब,


सारी अड़चन साथ लिखें तो, कितने पन्ने लग जाएंगे ?

क्या ख्वाहिश लिखने को उसमें, खाली पन्ने बच पाएंगे ?

'अड़चन को अवसर' लिख दें तो शायद बन जाए हिसाब !

कुछ बातें …


हम भी तो अर्जुन-सम गुजरे, अंतर्द्वन्द्व से कितनी बार,

फिर  'वासुदेव'  को क्यों न लिखें, समझाए जो गीता का सार,

जब ढूंढा जिस रूप में खोजा, मिला मुझे वो लिए जवाब ।

कुछ बातें …


कैसे शब्द बनेंगे वो पल, जब अवसाद बहुत हावी था ?

नींद नहीं, न भूख, न बातें, खुद को समझे अपराधी था,

उस झ्क उम्मीद को लिखो मगर, ढाए जिसने गम के सैलाब ।

कुछ बातें …


विफल हुए उम्मीद भी टूटी, रिस्ते कई बेस्वाद हुए, 

पर लिखना उन ठोकरों को, जिनके बल से फौलाद हुए,

ज़िक्र उसका भी करना जिसने, तुमसे तुम्हें किया बेनकाब !

कुछ बातें …


इक पन्ना उनको भी देना, जो टिफिन छीन कर खाते थे,

"मैं हूँ ना यार" कह कर वो, निष्फिक्र तुम्हें कर जाते थे,

उन यारों कि याद से भरा हुआ है, खुशियों का गुल्लक नायाब !

कुछ बातें …


किस्मत में होगा, मिल जायेगा, यही तो सुनते आये हैं,

अंतिम पन्ने में मंत्र वो लिखदो, जो खुद किस्मत ने बताए हैं,

जो खड़ा है ख़ुद के साथ हमेशा, क्यों न होगा कामयाब ।

कुछ बातें …


आओ हम तुम मिलकर लिखें, जिंदगी की यही किताब,

कुछ बातें सच्ची होंगी, कुछ होंगे महज़ ख़्वाब ।

कुछ होंगे महज़ ख़्वाब ॥


-आकाश 

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